Tuesday, 2 August 2016

बालकाण्ड

बालकाण्ड
जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू।। कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। विपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।।---अर्थ---पहले प्रभु ने हाथ जोड़कर सती को प्रणाम किया और पितासहित अपना नाम बताया। फिर कहा कि बृषकेतू शिवजी कहाँ हैं ? आप यहाँ अकेली वन मे किसलिये विचर रही हैं ?



राम वचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु। सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदय बड़ सोचु।---अर्थ---श्रीरामचन्द्रजी के कोमल और रहस्यभरे वचन सुनकर सतीजी को बड़ा संकोच हुआ। वे डरती हुईं ( चुपचाप ) शिवजी के पास चलीं, उनके हृदय में बड़ी चिंता हो गयी।



मैं शंकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना।। जाइ उतरु अब देहउँ  काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा।।---अर्थ---कि मैने शंकरजी का कहना न माना और अपने अज्ञान का श्रीरामचन्द्रजी पर आरोप किया। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर दूँगी ? ( यों सोचते-सोचते ) सतीजी के हृदय में अत्यन्त भयानक जलन पैदा हो गयी।




जाना राम सती दुःख पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा।। सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगे रामु सहित श्री भ्राता।।---अर्थ---श्रीरामचन्द्रजी ने जान लिया कि सतीजी को दुःख हुआ, तब उन्होंने अपना कुछ प्रभाव प्रकट करके उन्हें दिखलाया। सतीजी ने मार्ग में जाते हुए यह कौतुक देखा कि श्रीरामचन्द्रजी, सीताजी और लक्ष्मणसहित आगे चले जा रहे हैं। ( इस अवसर पर सीताजी को इसलिये दिखाया कि सतीजी श्रीरामचन्द्रजी के सच्चिदानन्दमय रूप को देखें, वियोग और दुःख की कल्पना जो उन्हें हुई थी वह दूर हो जाय तथा वि प्रकृतिस्थ हों )।




फिरि चितवा पाछे प्रभु देखा। सहित बंधु सिय सुंदर बेषा।। जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना।।---अर्थ---( तब उन्होंने ) पीछे  की ओर फिरकर देखा, तो वहाँ भी भाई लक्ष्मणजी और सीताजी के साथ श्रीरामचन्द्रजी सुन्दरवेष में दिखायी दिये। ये जिधर देखती हैं, उधर ही प्रभु श्रीरामचन्द्रजी विराजमान हैं और सुचतुर सिद्ध मुनीश्वर उनकी सेवा कर रहे हैं।



देखे सिव बिधि बिष्णु अनेका। अमित प्रभाउ एक ते एका।। बंदत चरण करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा।।---अर्थ---सतीजी ने अनेक शिव, ब्रह्मा और विष्णु देखे, जो एक-से-एक बढ़कर असीम प्रभाववाले थे। ( उन्होंने देखा कि ) भाँति-भाँति के वेष धारण किे सभी देवता श्रीरामचन्द्रजी की चरण वंदना और सेवा कर रहे हैं।



सती विधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप। जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप।।---अर्थ---उनहोंने अनगिनत अनुपम सती, ब्रम्हाणी और लक्ष्मी देखीं। जिस-जिस रूप में ब्रह्मा आदि देवता थे, उसी के अनुकूल रूप में ( उनकी ) ये सब ( शक्तियाँ ) भी थीं।



देखे जहँ तहँ रघुपति जेते। सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते।। जीव चराचर जो संसारा। देखे सकल अनेक प्रकारा।।---अर्थ---सतीजी ने जहाँ-तहाँ जितने रघुनाथजी देखे, शक्तियों सहित वहाँ उतने ही सारे देवताओं को भी देखा। संसार में जो चराचर जीव हैं, वे भी अनेक प्रकार से सब देखे।


पूजहिं प्रभुहिं देव बहु बेषा। राम रूप दूसर नहीं देखा।। अवलोके रघुपति बहुतेरे। सीता सहित न बेष घनेरे।।---अर्थ--- ( उन्होंने देखा कि ) अनेकों वेष धारण करके देवता प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की पूजा कर रहे हैं। परन्तु श्रीरामचन्द्रजी का दूसरा रूप कहीं नहीं देखा। सीता सहित श्रीरघुनाथजी बहुत से देखे परन्तु उनके वेष अनेक नहीं थे।


सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता। देखि सती अति भईं सभीता।। हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूँदि बैठी मग माहीं।।---अर्थ---( सब जगह ) वही रघुनाथजी, वही लक्ष्मण और वही सीताजी---सती ऐसा देखकर बहुत ही डर गयीं। उनका हृदय काँपने लगा और देह की सारी सुध-बुध जाती रही।  वे आँख मूँदकर मार्ग में बैठ गयीं।


बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी।। पुनि-पुनि नाइ राम पद सीसा। चली कहाँ जहँ रहे गिरीसा।।---अर्थ---फिर आँख खोलकर देखा तो वहाँ दच्छकुमारी सतीजी को कुछ भी नहीं दिखा। तब वे बार-बार श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाकर वहीं चलीं जहाँ श्रीशिवजी थे।


गईं समीप महेस तब हँसी पूछी कुसलात। लीन्हि परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात।।---अर्थ---जब पास पहुँचीं, तब श्रीशिवजी ने हँसकर कुशल-प्रश्न करके कहा कि तुमने रामजीकी किस प्रकार परीक्षा ली, सारी बात सच-सच कहो।