Sunday, 25 December 2016

बालकाण्ड---

 बालकाण्ड
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना।। कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।।---अर्थ---शिवजी की भक्ति, ज्ञान और धर्म से युक्त वचन रचना सुनकर प्रभु रामचन्द्रजी संतुष्ट हो गये। प्रभु ने कहा---हे हर ( शिव ) आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गयी। अब हमने जो कहा है उसे हृदय में रखना।




अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी।। तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए।।---अर्थ---इस प्रकार कहकर श्रीरामचन्द्रजी अन्तर्धान हो गये। शिवजी ने उनकी यह मूर्ति अपने हृदय में रख ली। उसी समय सप्तर्षि शिवजी के पास आये। प्रभु महादेवजी ने उनसे अत्यन्त सुहावने वचन कहे।




पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु। गिरिहिं प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु संदेहु।।---अर्थ---आपलोग पारबती के पास जाकर उनके प्रेम की परीक्षा लीजिये और हिमाचल को कहकर ( उन्हें पार्वती को लिवा लाने के लिये भेजिये तथा ) पार्वती को घर भिजाइये और उनके संदेह को दूर कीजिये।  




रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमंत तपस्या जैसी।। बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी।।---अर्थ---ऋषियों ने ( वहाँ जाकर) पार्वती को मूर्तिमान् तपस्या के रूप में देखा। मुनि बोले---हे सैलकुमारी ! सुनो, तुम किसलिये इतना कठोर तप कर रही हो।




केहि अवधाहहु का तुम्ह कहहु। हम सन सत्य मरमु किन कहहु।। कहत बचन मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जड़ताई।।---अर्थ---तुम किसकी अराधना करती हो और क्या चाहती हो ? हमसे अपना सच्चा भेद क्यों नहीं कहती ? ( पार्वती ने कहा---) बात कहते मन बहुत सकुचाता है। आपलोग मेरी मूर्खता सुनकर हँसेंगे।



मनु हठ पड़ा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा।। नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पंखन्ह हम उड़ाना।।---अर्थ---मन ने हठ पकड़ लिया है, वह उपदेश नहीं सुनता और जल पर दीवाल उठाना चाहता है। नारदजी ने जो कह दिया उसे सत्य जानकर मैं बिना ही पंख के उड़ना चाहती हूँ।



देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिय सदा सिवहिं भरतारा।।---अर्थ---हे मुनियों ! आप मेरा अज्ञान तो देखिये कि मैं सदा शिवजी को ही पति बनाना चाहती हूँ।



सुनत बचन बिहसे रिषय गिरिसंभव तव देह। नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेहु किस गेह।।---अर्थ---पार्वतीजी की बात सुनते ही रिषिलोग हँस पड़े और बोले---तुम्हारा शरीर पर्वत से ही तो उत्पन्न हुआ है। भला, कहो तो नारद का उपदेश सुनकर आजतक किसका घर बसा है ?






 दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवन देखा आई।। चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनकसिपु कर पुनि अस हाला।।---अर्थ---उन्होंने जाकर दच्छ के पुत्रों को उपदेश दिया था, जिससे उन्होंने लौटकर फिर घर का मुँह भी नहीं देखा। चित्रकेतू के घर को नारद ने ही चौपट किया। फिर यही हाल हिरण्यकशिपु का हुआ।




नारद सिख जे सुनहिं नर नारी। अवसि होहिं तजि भवन भिखारी।। मन कपटी तन सज्जन चीन्हा। आपु सरिस सबहिं चह कीन्हा।।---अर्थ---जो स्त्री-पुरुष नारद की सीख सुनते हैं, वे घर-बार छोड़कर अवश्य ही भिखारी हो जाते हैं। उनका मन तो कपटी है, शरीर पर सज्जनों के चिह्न हैं। वे सभी को अपने समान बनाना चाहते हैं।




तेहि कें बचन मानि बिस्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा।। निर्गुण निल्लज कुबेस कपाली। अकुल अगेह दिगम्बर ब्याली।।---अर्थ---उनके



वचनों पर विश्वास मानकर तुम ऐसा पति चाहती हो जो स्वभाव से ही उदासीन, गुणहीन, निर्लज्ज, बुरे वेषवाला, नर-कपालों की माला पहननेवाला, कुलहीन, बिना घर-बार का, नंगा और शरीर पर साँपों को लपेटे रखनेवाला है।




कहहु कवन सुख अस बरु पाएँ। भल भूलेहु ठग कै बौराएँ।। पंच कहे सिवँ सती बिबाही। पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही।।---अर्थ---ऐसे वर के मिलने से कहो, तुम्हे क्या सुख होगा ? तुम उस ठग ( नारद ) के बहकावे में आकर खूब भूलीं। पहले पंचों के कहने से शिव ने सती से विवाह किया था, परन्तु फिर उसे त्यागकर मरवा डाला।




अब सुख सोवत सोचु नहिं भीख मागि भव खाहि। सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं।।---अर्थ---अब शिव को कोई चिन्ता नहीं रही, भीख माँगकर खा लेते हैं और सुख से सोते हैं। ऐसे स्वभाव से ही अकेले रहनेवाले के घर भी भला कभी स्त्रियाँ टिक सकती हैं।




अजहूँ मानहु कहा हमारा। हम तुम्ह कहुँ नीक बिचारा।। अति सुन्दर सुचि सुखद सुशीला। गावहिं बेद जासु जस लीला।।---अर्थ---अब भी हमारा कहा मानो, हमने तुम्हारे लिये अच्छा वर विचारा है। वह बहुत ही सुन्दर, पवित्र, सुखदायक और सुशील है, जिसका यश और लीला वेद गाते हैं।



दूषन रहित सकल गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुण्ठ निवासी।। अस बरु तुम्हहिं मिलाउब आनी। सुनत बिहसि कह बचन भवानी।।---अर्थ---वह दोषों से रहित, सारे सद्गुणों की राशि, लक्ष्मी का स्वामी और बैकुण्ठपुरी का रहनेवाला है। हम ऐसे वर को लाकर तुमसे मिला देंगे। यह सुनते ही पार्वतीजी हँसकर बोलीं---





सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ छूट छूटै यह देहा।। कनकउ पुनि पषान तें होईं। जारेहुँ सहजु परिहर सोई।।---अर्थ---आपने यह सत्य ही कहा कि मेरा यह शरीर पर्वत से उत्पन्न हुआ है। इसलिये हठ नहीं छूटेगा, शरीर भले ही छूट जाय। सोना भी पत्थर से ही उत्पन्न होता है, सो यह जलाये जाने पर भी अपने स्वभाव ( सुवर्णत्व ) को नहीं छोड़ता।





नारद बचन मैं परिहरऊँ। बसउ भवनु उजरउ नहिं डरऊँ।। गुर के बचन प्रतीति जेहि। सपनेहुँ सुगम सुख सिधि तेही।।---अर्थ---अतः मैं नारदजी के वचनों को नहीं छोड़ूँगी; चाहे घर बसे या उजड़े, इससे मैं नहीं डरती। जिसको गुरु के वचनों में विश्वास नहीं है, उसको सुख और सिद्धि स्वप्न में भी सुगम नहीं होती।




महादेव अवगुन भवन विष्णु सकल गुन धाम। जेहि कर मन रम जाहि सन
तेहि तेही सन काम।।---अर्थ---माना कि महादेवजी अवगुणों के भवन हैं और विष्णु समस्त सद्गुणों के धाम हैं; पर जिसका मन जिसमें रम गया, उसको तो उसी से काम है।




जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हार धरि सीसा।। अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा।।---अर्थ---हेे मुनीश्वरों ! यदि आप पहले मिलते, तो मैं आपका उपदेश सिर माथे रखकर सुनती। परन्तु अब मैं अपना जन्म शिवजी के लिये हार चुकी। फिर गुण दोषों का विचार कौन करे ?





जौं तुम्हरे हठ हृदय बिसेषी। रहि जाइ बिनु किएँ बरेषी।। तौं कौतुकिअन्ह आलस नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं।।---अर्थ---यदि आपके हृदय में बहुत ही हठ है और विवाह की बातचीत किये बिना आपसे रहा ही नहीं जाता, तो संसार में वर-कन्या बहुत हैं। खिलवाड़ करनेवालों को आलस्य तो होता ही नहीं ( और कहीं जाकर कीजिये )




जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु रहउँ कुआरी।। तजउँ नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू।।---अर्थ---मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को छोड़ूँगी।



मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा।। देखि प्रेम बोले मुनि ज्ञानी। जय-जय जगदंबिके भवानी।।---अर्थ---जगजननी पार्वतीजी ने फिर कहा कि मैं आपके पैरों पड़ती हूँ। आप अपने घर जाइये, बहुत देर हो गयी। ( शिवजी में पार्वतीजी का ऐसा प्रेम) देखकर ज्ञानीमुनि बोले---हे जगजननी ! हे भवानी ! आपकी जय हो ! जय हो !




तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु। नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गात।।---अर्थ---आप माया हैं और शिवजी भगवान् हैं। आप दोनो समस्त जगत के माता पिता हैं। ( यह कहकर ) मुनि पार्वतीजी के चरणों में सिर नवाकर चल दिये। उनके शरीर बार-बार पुलकित हो रहे थे।




जाइ मुनिन्ह हिमवंत पठाए। करि बिनती गिरिजहिं गृह ल्याए। बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई।।---अर्थ---मुनियों ने जाकर हिमवान् को पा्वतीजी के पास भेजा और वे विनती करके उनको घर ले आए; फिर सप्तर्षियों ने शिवजी के पास जाकर उनको पार्वतीजी की सारी कथा सुनायी। 



भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा।। मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना।।---अर्थ---पार्वतीजी का प्रेम सुनते ही शिवजी आनन्दमग्न हो गये। सप्तर्षि प्रसन्न होकर अपने घर ( ब्रह्मलोक ) को चले गये। तब सुजान शिवजी मन को स्थिर करके श्रीरघुनाथजी का ध्यान करने लगे।




तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला।। तहिं सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते।।---अर्थ---उसी समय तारक नाम का असुर हुआ, जिसकी भुजाओं का बल प्रताप और तेज बहुत बड़ा था। उसने सब लोक और लोकपालों को जीत लिया, सब देवता सुख और संपत्ति से रहित हो गये।




अजर अमर सो जीति जाई। हारे सुर करि बिबिध लड़ाई। तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे।।.---अर्थ--- वह अजर-अमर था, इसलिये किसी से जीता नहीं जाता था। देवता उसके साथ बहुत तरह की लड़ाइयाँ लड़कर हार गये। तब उन्होंने ब्रह्माजी के पास जाकर पुकार मचायी। ब्रह्माजी ने सब देवताओं को दुःखी देखा।


सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ। संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ।।---अर्थ---ब्रह्माजी ने सबको समझाकर कहा---इस दैत्य की मृत्यु तब होगी जब शिवजी केवार्य से पुत्र उत्पन्न हो, इसको युद्ध में वही जीतेगा।


मोर कहा सुनि करहु उपाईं। होइहिं ईस्वर करिहिं सहाई।। सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा।।---अर्थ---मेरी बात सुनकर उपाय करो। ईश्वर सहायता करेंगे और काम हो जायगा। सतीजी ने जो दक्ष के यज्ञ में देह का त्याग किया था, उन्होंने अब हिमाचल के घर जाकर जन्म लिया है।



तेहि तप कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी।। जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी।।---अर्थ---उन्होंने शिवजी को पति बनाने के लिये तप किया है, इधर शिवजी सब छोड़-छाड़कर समाधि लगा बैठे हैं। यद्यपि है तो बड़े असमंजस की बात; तथापि मेरी एक बात सुनो।