Tuesday, 5 September 2017

बालकाण्ड

सुनु सुभ कथा भवानि, रामचरितमानस बिमल। कहा भुसुण्डि बखानि, सुनी बिहग नायक गरुड़।। सो सम्बाद उदार, जेहि बिधि भा आगें कहब। सुनहु राम अवतार, चरित परम सुन्दर अनघ।। हरिगुन नाम अपार, कथा रूप अगनित अमित। मैं निज मति अनुसार, कहउँ उमा सादर सुनहु।।___अर्थ___हे भवानी ! रामचरितमानस नामक निर्मल और शुभकारी कथा सुनो जिसको कागभुशुण्डिजी ने वर्णन किया और पक्षीराज गरुड़जी ने सुना। वह उत्तम संवाद जिस प्रकार से हुआ सो आगे कहूँगा, अभी तुम रामचन्द्रजी के अवतार का बहुत सुन्दर और पापनाशक चरित्र सुनो। हे पार्वती !  हरि के गुण, नाम, कथाएँ और रूप अपार, असंख्य और असीम हैं। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हूँ, आदर के साथ सुनो।

सुनु गिरिजा हरि चरित सुहाये। बिपुल बिसद निगमागम गाये।। हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कही जाइ न सोई।।___अर्थ___हे पार्वती ! सुनो, वेद शास्त्रों ने हरि के सुन्दर और शुद्ध चरित्र वर्णन किये हैं। हरि का अवतार जिस कारण से होता है वह कारण ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता कि यह इसी प्रकार से है।

राम अतर्क्य बुद्धि मन वानी। मत हमार अस सुनहि सयानी।। तदपि संत मुनि वेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना।।___अर्थ___हे भवानी हमारा मत तो यह है कि बुद्धि, मन और वाणी से श्रीरामचन्द्रजी का तर्कना नहीं की जा सकती। तथापि संत, मुनि और पुराण् जैसा कुछ अपनी बुद्धि के अनुसार कहते हैं।

तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही।। जब जब होय धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।___अर्थ___हे सुमुखी ! और जैसा मुझे समझ पड़ा है वैसा मैं तुम्हें सुनाता हूँ। जब जब धर्म की अवनति होती है और नीच अभिमानी असुर बढ़ जाते हैं।

करहिं अनीति जाय नहीं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।। तब तब धरि प्रभु बिबिध सरीरा। हरिहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।___अर्थ___और वे ऐसी अनीति करते हैं जो नहीं कही जा सकती। ब्राह्मण, गौ, देवता, पृथ्वी, ये सब दुःखी हो जाते हैं, तब वे कृपानिधान प्रभु अनेक प्रकार के शरीर धारण कर भक्तों के क्लेशों को दूर करते हैं।

असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। जग बिस्तारहिं बिसद जस, राम जन्म कर हेतु।।___अर्थ___वे असुरों को मारकर देवताओं को राज्य देते हैं और अपनी बाँधी हुई वेद मर्यादा की रक्षा करते हैं। तथा संसार में अपने निर्मल यश का विस्तार करते हैं। रामजी केवम जन्म लेने की यही कारण है।

सोइ जस गाइ भगति भव तरहीं। कृपासिन्धु जन हित तनु धरहीं।। राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका।।___अर्थ___वही यश गाकर भक्तजन संसार से तर जाते हैं। कृपासिंधु प्रभु भक्तों के लिये शरीर धारण करते हैं। श्रीरामचन्द्रजी के जन्म के अनेक कारण हैं जो एक से एक अधिक आश्चर्यवाले हैं।

जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी।। द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु विजय जान सब कोऊ।।___अर्थ___रामचन्द्रजी के एक दो जन्मों का वर्णन करता हूँ, हे बुद्धिवाली भवानी ! सावधान होकर सुनो। हरि भगवान् के दो प्यारे द्वारपाल जय और विजय हैं जिनको सब कोई जानता है।

विप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई।। कनकसिपु अरु हाटकलोचन। जगत विदित सुरपति मद मोचन।।___अर्थ___ब्राह्मणों के श्राप से दोनों भाइयों ने तामसी असुर शरीर पाया। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्क्ष ये देने राक्षस जगत् में स्वराज इन्द्र के गर्व को चूर करनेवाले प्रसिद्ध हुए।

बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता।। होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा।।___अर्थ___युद्ध में विजय पानेवाले दोनों प्रसिद्ध वीर थे। उनमें एक ( हिरण्याक्क्ष ) को बराह रूप धारण करके विष्णु ने मारा। फिर नृसिंह अवतार लेकर ( हिरण्यकशिपु ) को मारा और अपने भक्त का सुन्दर यश संसार में फैलाया।

भए निसाचर जाइ तेइ, महाबीर बलवान। कुम्भकरन रावन सुभट, सुर बिजई जग जान।।___अर्थ___फिर वे दोनों वीर बलवान् राक्षस जाकर कुम्भकर्ण और रावण नाम के महायोद्धा देवताओं को जीतनेवाले निसाचर हुए, जिन्हें संसार जानता है।

मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना। एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी।।___अर्थ___दोनों राक्षस यद्यपि भगवान् के हाथ से मारे गये तथापि उनकी मुक्ति नहीं हुई। तीनों जन्मों तक राक्षस होने का उनको शाप था। एक बार उनके हित के लिये भक्तों पर स्नेह करनेवाले प्रभु ने जन्म लिया।

कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता।। एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किये संसारा।।___अर्थ____इस अवतार में कश्यप और अदिति माता_पिता दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध हुए। एक कल्प में इस प्रकार अवतार लेकर संसार के बहुत से पवित्र चरित्र किये।

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलम्धर सन सब हारे। सम्भु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा।।___अर्थ___एक कल्प में सब देवता जलंधर दैत्य से युद्ध में हार गये और उन्हें दुखी देखकर महादेवजी ने उससे बहुत युद्ध किया परन्तु वह दैत्य महाबली था, शिवजी के मारे नहीं मरा।

परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी।।___अर्थ___दैत्यराज जलंधर की स्त्री बड़ी पतिव्रता थी, उसके पतिव्रत धर्म के बल से उसको शिवजी नहीं जीत सके।

छल करि टारेउ तासु ब्रत, प्रभु सुर कारज कीन्ह। जब तेहिं जानेउ मरम तब, श्राप कोप करि दीन्ह।।___अर्थ___प्रभु ने छल से उसका व्रत भंगकर देवताओं का कार्य पूरा किया। जब उस स्त्री ने यह भेद जाना तब कोप करके हरि को श्राप दिया।

तासु श्राप हरि कीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना। तहाँ जलम्धर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ।।___अर्थ___उसका श्राप लीलानिधि कृपालु भगवान् ने अंगीकार किया। वही जलम्धर रावण हुआ। उसे रामजी ने युद्ध में मारकर परम पद दिया।

एक जनम कर कारन एहा। जेहि लगा राम धरा नर देहा।। प्रति अवतार कथा प्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी।।____अर्थ___एक जन्म का कारण यह है जिससे श्रीरामचन्द्रजी ने मनुष्य शरीर लिया। प्रभु के हर एक अवतार की कथा मुनियों ने सुन कवियों ने विस्तार से कही है।

नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा। गिरिजा चकित भईं सुनि बानी। नारद विष्नु भगत पुनि ज्ञानी।।___अर्थ___ एक बार नारदजी ने श्राप दिया, एक कल्प में इसी कारण से अवतार हुआ। यह सुनकर आश्चर्यचकित हो पार्वतीजी बोलीं___नारदजी तो विष्णुभक्त और ज्ञानी मुनि हैं।

कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा।। यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह अचरज भारी।।___अर्थ___मुनि ने किस कारण श्राप दिया ? लक्ष्मीपति भगवान् ने क्या अपराध किया था। हे त्रिपुरारी ! यह कथा मुझसे कहिये। नारद मुनि के मन में मोह उत्पन्न हो जाना यह बड़े आश्चर्य की बात है।

बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ। जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।।___अर्थ___तब महादेवजी ने हँसकर कहा___न कोई ज्ञानी है म मूर्ख। श्रीरघुनाथजी जब जिनको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है।