बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए।। जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता।।___ अर्थ___श्रीरामचन्द्रजी की बहुत ही सरल ( भोली ) और सुन्दर ( मनभावनी ) बाललीलाओं का सरस्वती, शेषजी, शिवजी और वेदों ने गान किया है। जिनका मन इन लीलाओं में अनुरक्त नहीं हुआ, विधाता ने उन मनुष्यों को वंचित कर दिया ( नितान्त भाग्यहीन बनाया )।
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।। गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई।।___ अर्थ____ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्रीरघुनाथजी [ भाइयोंसहित ] गुरु के घर में विद्या पढ़ने गये और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गयीं।
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी।। बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिं खेल सकल नृप लीला।।___ अर्थ___चारों वेद जिन के स्वाभाविक श्वास हैं, वे भगवान् पढ़ें े यह बड़ा कौतुक ( अचरज ) है। चारों भाई विद्या, विनय, गुण और शील में [ बड़े ] निपुण हैं और सब राजाओं की लीलाओं के ही खेल खेलते हैं।
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा।। जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई।।___ अर्थ___ हाथों में बाण और धनुष बहुत ही शोभा देते हैं। रूप देखते ही चराचर ( जड़_चेतन ) मोहित हो जाते हैं। वे सब भाई जिन गलियों में खेलते [ हुए निकलते ] हैं, उन गलियों के सभी स्त्री_पुरुष उनको देखकर स्नेह से शिथिल हो जाते हैं अथवा ठिठककर रह जाते हैं।
कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल। प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल।।___ अर्थ____ कोसलपुर के रहनेवाले स्त्री, पुरुष, बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्रीरामचन्द्रजी प्राणों ये भी बढ़कर प्रिय लगते हैं।
बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई।। पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी।।___ अर्थ____ श्रीरामचन्द्रजी भाइयों और इष्ट_मित्रों को बुलाकर साथ ले लेते हैं और नित्य वन में जाकर शिकार खेलते हैं। मन में पवित्र समझकर मृगों को मारते हैं और प्रतिदिन लाकर राजा ( दशरथजी ) को दिखाते हैं।
जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे।। अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं।।____ अर्थ____जो मृग श्रीरामजी के बाण से मारे जाते थे, वे शरीर छोड़कर देवलोक को चले जाते थे। श्रीरामचन्द्रजी अपने छोटे भाइयों और सखाओं के साथ भोजन करते हैं और माता_पिता की आज्ञा का पालन करते हैं।
जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा।। बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई।।____अर्थ____जिस प्रकार नगर के लोग सुखी हों, कृपानिधान श्रीरामचन्द्रजी वही संयोग ( लीला ) करते हैं। मन लगाकर वेद_पुराण सुनते हैं और फिर स्वयं छोटे भाइयों को समझाकर कहते हैं।
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।। आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा।।___ अर्थ___ श्रीरघुनाथजी प्रातःकाल उठकर माता_पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर की काम करते हैं। उनके चरित्र को देख_देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते हैं।
ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप। भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप।।___ अर्थ___जो व्यापक, अकल ( निरवयव ), इच्छारहित, अजन्मा और निर्गुण हैं; तथा जिनका न नाम है न रूप, वही भगवान् भक्तों के लिये नाना प्रकार के अनुपम ( अलौकिक ) चरित्र करते हैं।
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