गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई।।___ अर्थ____विश्वामित्रजी ने सब कथा कह सुनाई जिस प्रकार गंगाजी पृथ्वी पर आईं थीं।
तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए। बिबिध दान महिदेवन्ह पाए।। हरषि चले मुनिवृंद सहाया। बेगि बिदेह नगर नियराया।।___अर्थ____प्रभु ने ऋषियों सहित स्नान किया, अनेक प्रकार के दान ब्राह्मणों ने पाये। फिर प्रसन्न होकर वे मुनिगण के साथ चले और शीघ्र ही जनकपुरी के निकट पहुँचे।
पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी।। बापीं कूप सहित सर नाना। सलिल सुधा सम मनि सोपाना।।___अर्थ___श्रीरामचन्द्रजी ने जब नगर की शोभा देखी तब छोटे भाई सहित बहुत ही प्रसन्न हुए। अनेक बावली, कुएँ, नदी और तालाबों में अमृत के समान जल भरा है और मणियों की सीढ़ियाँ बनी हैं।
गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा।। बरन बरन बिकसे बन जाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता।।___अर्थ___सुगंधित फूलों के रस में मतवाले सुन्दर भौंरे गूँज रहे हैं, बहुत रंग के पक्षी मनोहर बोली बोल रहे हैं। रंग रंग के कमल खिल रहे हैं, तीनों प्रकार की शीतल, मंद, सुगंधित वायु सबको सुख देनेवाली बह रही है।
सुमन बाटिका बाग बन, बिपुल बिहंग निवास। फूलत फलत सुपल्लवत, सोहत पुर चहुँ पास।।___अर्थ___फुलवारी, बाग और वन नगर को चारों ओर शोभा दे रहे हैं। उनमें भाँति_भाँति के पक्षी अपने घोंसले बनाकर वास कर रहे हैं, सुन्दर कोमल पत्ते निकल रहे हैं।
बनइ न बरनत नगर निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइ लोभाई।। चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी।।___अर्थ___नगर की शोभा का वर्णन करते नहीं बनता, जहाँ मन जाता है, वहीं लुभा जाता है। बहुत सुंदर बाजार और बड़ी विचित्र मणियों से जड़ी अटारियाँ हैं मानो ब्रह्मा वो उन्हें अपने हाथों से बनाई हों।
धनिक बनिक बर धनद समाना। बैठे सकल बस्तु लै नाना।। चौहट सुन्दर गलीं सुहाई। सन्तत रहहिं सुगन्ध सिंचाई।।___अर्थ___ कुबेर के समान धनी व्यापारी सब प्रकार की वस्तुएँ लेकर बैठे हैं। चौक और सुहावनी गलियाँ सदा सुगन्धित रहती हैं।
मंगलमय मन्दिर सब केरे। चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें।। पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता।।___अर्थ___ सबके घर ऐसे विचित्र हैं मानो कामदेवरूपी चित्रकार ने चित्रित किया है। नगर के सब स्त्री_पुरुष सुन्दर, पवित्र, बड़े सज्जन, धर्मात्मा, ज्ञानवान और गुणवान् हैं।
अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि निवासू।। होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन शोभाजनु रोकी।।___अर्थ___ राजा जनक का जहाँ निवास_स्थान था वह बहुत ही अनुपम था, जिसके ऐश्वर्य तो देखकर देवता भी थक जाते थे। कोट को देखकर चित्त चकित हो जाता था, उसने मानो सब भुवनों की शोभा रोक रक्खी थी।
धवल धाम मनि पुरट पट, सुघटित नाना भाँति। सिय निवास सुंदर सदन, सोभा किमि कहि जाति।।___अर्थ____उज्ज्वल महलों में सुन्दर मणि जड़ित सोने के भाँति_भाँति के पर्दे लगे थे। सीताजी का निवास भवन तो बहुत ही सुहावना था, उसकी शोभा कैसे कही जा सकती है ?
सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा।। बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रथ संकुल सब काला।।___अर्थ___महलों के सब दरवाजे बहुत ही सुन्दर थे, उनमें हीरों से जड़े हुए किवाड़ लगे थे। वहाँ नट मागध और भाटों की बड़ी भीड़ लगी थी। बहुत ही बड़ी घुड़सालें और गजशालाएँ बनी हुईं थीं जिनमें सदैव घोड़े, हाथी, रथ भरे रहते थे।
सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृप गृह सरिस सदन सब केरे।। पुर बाहेर सर सरिस समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा।।___ अर्थ___बहुत से शूरवीर, मंत्री और सेनापति थे। उन सबके महल भी राजमहल के समान ही थे। नगर के बाहर और नदियों के समीप जहाँ_तहाँ अनेक राजालोग उतरे हुए थे।
देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।। कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुवीर सुजाना।।___अर्थ___एक सुन्दर सब भाँति की सुविधापूर्ण और सुहावने आम के बगीचे को देखकर विश्वामित्रजी ने कहा___हे सुजान रामचन्द्रजी ! मेरा मन कहता है कि यहीं ठहरा जाय।
भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनिवृंद समेता।। विश्वामित्र महामुनि आये। समाचार मिथिलापति पाये।।___अर्थ___बहुत अच्छा, स्वामिन् ! कहकर कृपानिधान रामचन्द्रजी मुनिगणों सहित वहीं उतरे। महामुनि विश्वामित्रजी आये हैं, यह राजा जनक ने सुना।
संग सचिव सुचि भूरि भट, भूसुर बर गुर ज्ञाति। चले मिलन मुनिनायकहिं, समुद्र राई एहि भाँति।।___अर्थ___साथ में निर्मल बुद्धिवाले मंत्री, अनेक योद्धा, उत्तम ब्राह्मण, गुरु तथा जाति के लोगों को लेकर विश्वामित्रजी से मिलने चले।
कीन्ह प्रणाम चरन करि माथा। दीन्ह असीस मुदित मुनिनाथा।। बिप्रवृंद सब आदर बन्दे। जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे।।___अर्थ___राजा के चरणों पर मस्तक रखकर प्रणाम किया। तब मुनिनाथ ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। फिर राजा ने सब ब्राह्मणों को आदरपूर्वक प्रणाम किया और अपने भाग्य को बड़ा जानकर प्रसन्न हुए।
कुसल प्रश्न कहि बारहिं बारा। विश्वामित्र नृपहि बैठारा।। तेहि अवसर आये दोउ भाई। गये रहे देखन फुलवाई।।___अर्थ___विश्वामित्रजी ने बार_बार कुशल पूछकर राजा को बैठाया। उसी समय दोनों भाई भी आ गये जो फुलवारी देखने गये थे।
स्याम गौर मृदु बयस किसोरा। लोचन सुखद बिश्व चितचोरा।। उठे सकल जब रघुपति आये। बिश्वामित्र निकट बैठाये।।___ अर्थ___वे दोनों श्याम और गौर_वर्ण, कोमल अंग, किशोर अवस्थावाले, नेत्रों को सुख देनेवाले और संसार के चित्त को चुरानेवाले थे। जब राजकुमार आये तो सभी उठ खड़े हुए, मुनि ने उन्हें अपने पास बैठाया।
भये सब सुखी देखि दोउ भ्राता। बारि बिलोचन पुलकित गाता।। मूरति मधुर मनोहर देखी। भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी।।___ अर्थ___दोनों भाइयों को देखकर सब सुखी हुए। नेत्रों में जल भर आया और शरीर पुलकायमान हो गया। मनोहर माधुरी मूर्ति का दर्शन करके विदेह जनक विशेष रूप से देह की सुध भूल गये।
प्रेम मगन मनु जानि नृप, करि बिबेकु धरि धीर।। बोले मुनि पद नाइ सिरु, गदगद गिरा गभीर।।___ अर्थ___अपने,मन को प्रेम में मगन जानकर ज्ञान का आश्रय लेकर राजा जनक मुनि को प्रणाम करके गद्गद् और गम्भीर बाणी में बोले___
कहहु नाथ सुन्दर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।। ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि कि सोइ आवा।।___ अर्थ____हे नाथ ! कहिये, दोनों सुन्दर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या राजकुल पालक हैं ? अथवा बेद जिस ब्रह्म को ‘नेति’ कहकर गाते हैं वही क्या दो स्वरूप धरकर आया है?
सहज बिरागरूप मन मोरा। थकित मोर जिमि चन्द्र चकोरा।। ताते प्रभु पूछेउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करेहु दुराऊ।।___ अर्थ___मेरा मन जो स्वभाव से ही वैराग्यरूप है, वह इनके दर्शन से ऐसा मुग्ध हो रहा है जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर। इससे हे प्रभु ! मैं सच्चे भाव से पूछता हूँ, हे नाथ ! कहिये, छिपाव मत कीजिये।
इन्हहिं बिलोकत अति अनुरागा। बरबस ब्रह्म सुखहिं मन त्यागा।। कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका। बचन तुम्हार न होइ अलीका।।___ अर्थ___इन्हें देखते ही मेरे मन ने प्रेम के कारण ब्रह्मानन्द को छोड़ दिया है। मुनि ने हँसकर कहा___ हे राजन् ! आपने ठीक कहा। आपका वचन मिथ्या नहीं हो सकता।
ये प्रिय सबहिं जहाँ लगि प्रानी। मनु मुसुकाहिं रामु सुनि बानी।। रघुकुलमनि दसरथ के जाए। मम हित लागि नरेस पठाए।।___अर्थ____संसार में जितने जीव हैं ये सभी को प्रिय हैं। यह सुनकर रामजी मन में मुसकराये। रघुवंशियों में श्रेष्ठ महाराज दशरथजी के राजकुमार हैं। मेरे हित के लिये राजा ने इन्हें मेरे साथ भेजा है।
रामु लखनु दोउ बन्धुबर, रूप सील बलधाम।। मख राखेउ सबु साखि जगु, जीति असुर संग्राम।।___ अर्थ____ये राम और लक्ष्मण दोनों श्रेष्ठ भाई रूप, शील और गुणों के स्थान हैं। सब जगत् इस बात का साक्षी है कि इन्होंने मेरे यज्ञ की रक्षा की और युद्ध_क्षेत्र में असुरों को जीता है।
मुनि तब तपन देखि कह राऊ। कही न सकऊँ निज पुण्य प्रभाऊ।। सुन्दर श्याम गौर कोई भ्राता। आनंदहूँ के आनंददाता।।___ अर्थ___ राजा ने कहा___हे मुनि ! आपके चरणों के दर्शन करके मैं अपने पुण्य का प्रभाव नहीं कह सकता। ये सुन्दर साँवरे और गोरे दोनों भाई आनन्द को भी आनन्द देनेवाले हैं।
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