Tuesday, 19 June 2018

बालकाण्ड

तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा। फिरेउ राउ मन सोच अपारा।। सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई। त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई।।___अर्थ___वहाँ न भोजन था, न रसोइया ब्राह्मण था। तब राजा लौट आया, मन में बड़ा सोच हुआ। फिर राजा ने सब वृतांत ब्राह्मणों को सुनाया और मारे डर के घबराकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

भूपति भावी मिटा नहिं, जदपि न दूषन तोर। किएँ अन्यथा होइ नहिं, बिप्रश्राप अति घोर।।___ अर्थ___ हे राजन् ! होनिहार नहीं मिटती, यद्यपि तुम्हारा अपराध नहीं है। ब्राह्मणों का महाघोर श्राप किसी के लिये अन्यथा नहीं हो सकता।

अस कहा सब महिदेव सिधाए। समाचार पुरलोगन्ह पाए। सोचहिं दूषन दैवहिं देहीं। बिचरत हंस काग किय जेहीं।।___ अर्थ___ऐसा कहकर सब ब्राह्मण चले गये। यह सब समाचार नगर के लोगों ने सुना तो वे चिंता करने और दाँव को दोष देने लगे, जिसने हंस बनाते कौवा वीना दिया, ऐसे धर्मात्मा राजा को राजा को राक्षस बना दिया।

उपरोहितहिं भवन पहुँचाई। असुर तापसहिं खबर जनाई।। तेहि खल जहँ तहँ पत्र पठाए। सजि सजि सेन भूप सब धाए।।___ अर्थ__ पुरोहित को घर पहुँचाकर उस असुर ने कपटी मुनि को सब हाल कह सुनाया। तब उस दुष्ट ने जहाँ_तहाँ पत्र भेज दिये तो अपनी_अपनी सेना सजाकर सब राजा चढ़ आये।

घेरेन्हि नगर निसान बजाई। बिबिध भाँति हित होइ लराई।। जूझे सकल निपट करि करनी। बन्धु समेत परेउ नृप धरनी।।___ अर्थ___उन्होंने डंका बजाकर नगर को घेर लिया। अनेक प्रकार से नित्य लड़ाई होने लगी। सब योद्धा रण में जूझ गए, राजा भाइयों सहित पृथ्वी पर गिरकर मारा गया।

सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा। बिप्र श्राप किमि होइ असाँचा।। रिपुजिति सब नृप नगर बसाई। निज पुर गवने जय जसु पाई।।___ अर्थ___ सत्यकेतु के वंश में कोई नहीं बचा, ब्राह्मणों का श्राप कैसे असत्य हो सकता था ? सब राजा शत्रु को जीतकर,  नगर फिर से बसाकर, विजय और कीर्ति को पाकर अपने_अपने नगर को चले।

भरद्वाज सुनु जाहि जब, होइ विधाता बाम। धूरि मेरुसम जनक जम, ताहि ब्याल सम दाम।।___अर्थ___याज्ञवल्क्यजी कहते हैं___ हे भरद्वाज ! सुनो, जब सबका विधाता उल्टा होता है तब उसको धूल मेरु पर्वत के समान, पिता यम के समान और रस्सी साँप के समान हो जाती है।

काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा।। दस सिर ताहि बीस भुजदण्डा। रावण नाम बीर बरिदण्डा।।___ अर्थ___ हे मुनि ! सुनो, वही राजा ( प्रतापभानु ) समय पाकर परिवारसहित रावण नाम राजा राक्षस हुआ। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ हुईं और वह बड़ा शूरवीर हुआ।

भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुम्भकरन बलधामा।। सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बन्धु लघु तासू।।___ अर्थ____राजा का अरिमर्दन नामक छोटा भाई बलवान कुम्भकर्ण हुआ और जो धर्मरुचि नामवाला मंत्री था, उसका वह सौतेला छोटा भाई हुआ।

कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका।। कृपारहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं विश्व परितापी।।___अर्थ___वे सब कामना के अनुसार रूप धारण करनेवाले, दुष्ट स्वभाव, अनेक जाति के, डेढ़े, डरावने, महा अज्ञानी, दयाहीन, हिंसक, पापी और संसार_भर को दुःख देनेवाले थे। उनकी दुष्टता कही नहीं जा सकती।

उपजे जदपि पुलस्त्यकुल, पावन अमल अनूप। तदपि महीसुर श्राप बस, भए सकल अघरूप।।___अर्थ___यद्यपि वे पुलस्त्यजी के पवित्र, शुद्ध और अनुपम कुल में उत्पन्न हुए तथापि ब्राह्मणों के श्राप के कारण वे महापापी हुये।

कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं वरनि सो जाई। गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु हर प्रसन्न मैं ताता।।___अर्थ___तीनों भाइयों ने अनेक प्रकार से महाकठिन तप किया जिसका वर्णन नहीं हो सकता। तप देखकर ब्रह्माजी उनके समीप गए और कहा___हे तात ! वर माँगो, मैं प्रसन्न हूँ।

करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा।। हम काहू के मरहिं न मारेे। बानर मनुज जाति दुइ बारें।।___अर्थ____तब विनती करके चरण पकड़कर रावण बोला___ हे जगदीश्वर ! सुनिए, नामक और मनुष्य इन दोनों को छोड़कर हम किसी से न मरें।

एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मैं ब्रह्मा मिलि तेहि हर दीन्हा।। पुनि प्रभु कुम्भकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ।।___ अर्थ___( शिवजी कहते हैं कि )___मैंने और ब्रह्मा ने मिलकर वरदान दिया कि ‘एवमस्तु’ तुमने बड़ा तप किया है। फिर ब्रह्माजी कुम्भकर्ण के पास गए। उसे देखकर मन में बड़ा आश्चर्य हुआ।

जौं एहि खल नित करब अहारू। होइहिं सब उजारि संसारू। सारद प्रेरि तासु मति फेरी। माँगेसि नींद मास षट केरी।।___ यदि यह दुष्ट नित्य भोजन करेगा तो सब संसार उजाड़ हो जायगा। अतः सरस्वती को भेजकर उसकी मति फेर दी ( जिसमें उसने छः महीने की नींद माँगी।

गये बिभीषन पास पुनि, कहेउ पुत्र हर मागु। तेहिं मांगेउ भगवन्त पद, कमल अमल अनुरागु।।___ अर्थ___ फिर ब्रह्माजी विभीषण रे पास गये और कहा___ हे पुत्र ! वर माँगो। उसने भगवान के चरण कमलों में निर्मल ( निष्काम और अनन्य ) प्रीति माँगी।

तिन्हहिं देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए।। मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुन्दरि नारि ललामा।।___अर्थ___उन्हें वर देकर ब्रह्माजी चले गये। तब वे भी प्रसन्न होकर अपने घर आए। मत दानव की कन्या मंदोदरि परम सुन्दरी और स्त्रियों में श्रेष्ठ थी।

सोइ मँय दीन्ही रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी। हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बन्धु बिआहेसि जाई।।___अर्थ___वह कन्या मयदानव ने रावण को यह समझकर दी कि राक्षसराज की पटरानी होगी। अच्छी स्त्री को पाकर रावण बहुत प्रसन्न हुआ। फिर उसने जाकर दोनों भाइयों का विवाह किया।


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