सुनि बोली मुलाकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर विज्ञानी।। तुम्हारें जान कामु अब जारा। अब लगी संभव रहे सबिकारा।___यह सुनकर पार्वतीजी मुस्कराकर बोलीं___ हे विज्ञानी मुनिवरों ! आपने उचित ही कहा। आपकी समझ में शिवजी ने कामदेव को अब जलाया है, अबतक तो वे विकारयुक्त ही रहे।
हमरे जान सदा सिव जोगी। अजय अनवद्य अकाम अभोगी।। जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी।।___अर्थ___किन्तु हमारी समझ से तो शिवजी सदा से ही योगी, अजन्मा, अनिन्द्य, कामरहित, और भोगहीन हैं और यदि मैने शिवजी को ऐसा समझकर ही मन, वचन और कर्म से प्रेमसहित उनकी सेवा की है__
तौं हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा।। तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोई अति बर अबिबेकु तुम्हारा।।___अर्थ___तो हे मुनिवरों ! सुनिये, वे कृपानिधान भगवान् मेरी प्रतिज्ञा को सत्य करेंगे। आपने जो यह कहा कि शिवजी ने कामदेव को भष्म कर दिया, यही आपका बड़ा भारी अविवेक है।
तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम ते निकट जाइ नहिं काऊ।। गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई।।___अर्थ___हे तात ! अग्नि का तो यह सहज स्वभाव ही है कि पाला उसके करीब कभी जा ही नहीं सकता और जाने पर वह अवश्य नष्ट हो जायगा। महादेवजी और कामदेव के सम्बन्ध में भी यही बात समझना चाहिये।
हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास। चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास।।___अर्थ___पार्वती के वचन सुनकर और उनका प्रेम तथा विश्वास देखकर मुनि हृदय में बड़े प्रसन्न हुए। वे भवानी को सिर नवाकर चल दिये और हिमाचल के पास पहुँचे।
सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनाना। मदन दहन सुनि अति दुखु पावा।। बहुरि कहेउ रति कर बरदाना। सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना।।___अर्थ___उन्होंने पर्वतराज हिमाचल को सब हाल सुनाया। कामदेव का भष्म होना सुनकर हिमाचल बहुत दुःखी हुए। फिर मुनियों ने रति के वरदान की बात कही, उसे सुनकर हिमवान् को बड़ी खुशी हुई।
हृदय बिचारि संभु प्रभुताई। सादर मुनिबर लिये बोलाई।। सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई। बेगि बेदबिधि लगन धराई।।___अर्थ___शिवजी के प्रभाव को मन में विचारकर हिमाचल ने श्रेष्ठ मुनियों को आदरपूर्वक बुला लिया और उनसे शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी निकलवाकर वेद की विधि के अनुसार शीघ्र ही लग्न निश्चय कराकर लिखवा लिया।
पत्री सप्तरिषिन्ह सोई दीन्ही। गहि पद विनय हिमाचल कीन्ही।। जाइ बिधिहि तिन्ह दीन्हि सो पाती। बाचत प्रीति न हृदयँ समाती।।___अर्थ___ फिर हिमाचल ने लग्नपत्रिका सप्तरिषियों को दे दी और चरण पकड़कर उनकी विनती की। उन्होंने जाकर वह लग्नपत्रिका ब्रह्माजी को दी। उसको पढ़ते समय उनके हृदय में प्रेम समाता न था।
लगन बाचि अज सबहिं सुनाई। हरषे मुनि सब सुर समुदाई।। सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे। मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे।।___अर्थ___ब्रह्माजी ने लग्न पढ़कर सबको सुनाया, उसे सुनकर सब मुनि और देवताओं का सारा समाज हर्षित हो गया। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी, बाजे बजने लगे और दसों दिशाओं में मंगल कलश सजा दिये गये।
लगे सँवारन सकल सुर बाहन बबिबिध बिमान। होहिं सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान।।___अर्थ___सब देवता भाँति_भाँति के बाहन और विमान सजाने लगे, कल्याणप्रद मंगल शकुन होने लगे और अप्सराएँ गाने लगीं।
सिवहिं संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।। कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला।।___अर्थ___ शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उसपर साँपों का मौर सजाया. गया। शिवजी ने साँपों के ही कुण्डल और कंकण पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया।
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा।। गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला।।___अर्थ___शिवजी के सुन्दर मस्तक पर चन्द्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, साँपो का जनेऊ, गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी। इस प्रकार उनका वेष अशुभ होने पर भी वे कल्याण के धाम और कृपालु हैं।
कर त्रिसूूल अरु डमरू बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा। देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनी जग नाहीं।।___अर्थ___एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सुशोभित है। शिवजी बैल पर चढ़कर चले। बाजे बज रहे हैं। शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुसकरा रही हैं ( और कहती हैं कि ) इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी।
बिष्णु बिरंचि आदि सुरब्राता। चढ़ि_चढि बाहन चले बराता।। सुर समाज सब भाँति अनूपा। नहिं बरात दूलह अनुरूपा।।___ अर्थ___विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं के समूह अपने_ अपने वाहनों ( सवारियों ) पर चढ़कर बरात में चले। देवताओं का समाज सब प्रकार से अनुपम ( परम सुन्दर ) था, पर दूल्हे के योग्य बरात न थी।
बिष्णु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज। बिलग बिलग होई चलहु सब निज निज सहित समाज।।___तब विष्णु भगवान् ने सब देवताओं को बुलाकर हँसकर ऐसा कहा__सब लोग अपने_अपने दल समेत अलग_अलग होकर चलो।
बर अनुहारि बरात न भाई। हँसी करैहहु पर पुर जाई।। बिष्णु बचन सुनि सुर मुसुकाने। निज निज सेन सहित बिलगाने।।___अर्थ___हे भाई ! हमलोगों की यह बरात वर के योग्य नहीं है। क्या पराये नगर में जाकर हँसी कराओगे ? विष्णु भगवान् की बात सुनकर देवता मुसकराये और अपनी_अपनी सेना सहित अलग हो गये।
मनहिं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं।। अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे। भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे।।___अर्थ___ महादेवजी ( यह देखकर ) मन_ही_मन मुस्कराते हैं कि विष्णु भगवान् के व्यंग्य वचन ( दिल्लगी ) नहीं छूटते। अपने प्यारे ( विष्णुभगवान् ) के इन अति प्रिय वचनों को सुनकर शिवजी ने भी भृंगी को भेजकर अपने सब गणों को बुलवा लिया।
सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।। नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।।___अर्थ___शिवजी की आज्ञा सुनते ही सब चले आये और उन्होंने स्वामी के चरणकमलों में सिर नवाया। तरह_तरह की सवारियों और तरह_तरह के वेषवाले अपने समाज को देखकर शिवजी हँसे।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।। बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोई अति तनखीना।।___अर्थ___कोई बिना मुख का है, किसी के बहुत से मुख हैं, कोई बिना हाथ_पैर का है तो किसी के कई हाथ_पैर हैं। किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं हैं। कोई बहुत मोटा_ताजा है तो कोई बहुत ही दुबला_पतला है।
तनखीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें। भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें।। खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै। बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै।।___अर्थ___कोई बहुत दुबला, कोई बहुत मोटा, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेष धारण किये हुए है। भयंकर गहने पहने, हाथ में कपाल लिये है और सब_के_सब शरीर में ताजा खून लपेटे हुए हैं। गधे, कुत्ते, सूअर और सियार के_से उनके मुख हैं। गणों के अनगिनत वेषों को कौन गिने ? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों की जमातें हैं। उनका वर्णन करते नहीं बनता।
नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब। देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि।।___अर्थ___भूत_प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सब बड़े मौजी हैं। देखने में बहुत ही बेढंगे जान पड़ते हैं और बड़े ही विचित्र ढंग से बोलते हैं।
जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।। इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना।।___अर्थ___जैसा दूल्हा है, अब वैसी ही बरात बन गयी है। मार्ग में चलते हुए भाँति_भाँति के कौतुक ( तमाशे ) होते जाते हैं। इधर हिमाचल ने ऐसा विचित्र मण्डप बनाया कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता।
सैल सकल जहँ लगि जग माहीं। लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं।। बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा।।___अर्थ___जगत् में जितने छोटे_बड़े पर्वत थे, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता तथा जितने वन, समुद्र, नदियाँ और तलाब थे, हिमाचल ने सबको नेवता भेजा।
कामरूप सुन्दर तन धारी। सहित समाज सहित बर नारी।। गए सकल तुहिनाचल गेहा। गावहिं मंगल सहित सनेहा।।___अर्थ___वे सब अपने इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले सुन्दर शरीर धारण कर सुन्दरी स्त्रियों और समाजों के साथ हिमाचल के घर गये। सभी स्नेहसहित मंगल गीत गाते हैं।
प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए। जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए।। पुर सोभा अवलोकि सुहाई। लागइ लघु बिरंचि निपुनाई।।___अर्थ___ हिमाचल ने पहले ही से बहुत से घर सजवा रखे थे। यथायोग्य उन_उन स्थानों में सब लोग उतर गये। नगर की सुन्दर शोभा देखकर ब्रह्मा की रचना चातुरी भी तुच्छ लगती थी।
लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही। बन बाग कूप तड़ाग सुभग सब सक को कही।। मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं। बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं।।___अर्थ____ नगर की शोभा देखकर ब्रह्मा की निपुणता सचमुच तुच्छ लगती है। वन, बाग, कुएँ, तालाब, नदियाँ सभी सुन्दर हैं; उनका वर्णन कौन कर सकता है ? घर_घर बहुत से मंगलसूचक तोरण और ध्वजा_पताकाएँ सुशोभित हो रही हैं। वहाँ के सुन्दर और चतुर स्त्री_पुरुषों की छबि देखकर मुनियों के भी मन मोहित हो जाते हैं।
जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ। रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ।।___अर्थ___ जिस नगर में स्वयं जगदम्बा ने अवतार लिया, क्या उसका वर्णन हो सकता है ? जहाँ रिद्धि, सिद्धि, सम्पत्ति और सुख नित_नये बढ़ते जाते हैं।
नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई।। करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना।।___अर्थ___बरात को नगर के निकट आयी सुनकर नगर में चहल_पहल मच गयी। अगवानी करनेवाले लोग बनाव_श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदरसहित बरात को लेने चले।
हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहिं देखि अति भए सुखारी।। सिव समाज जब देखने लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे।।___अर्थ___देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान् को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए। किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन ( सवारियों के हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि ) डरकर भाग चले।
धरि, धीरजु तहँ रहे सयाने बालक सब लै जीव पराने।। गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता।।___अर्थ___कुछ बड़ी उम्र के समझदार लोग धीरज धरकर वहाँ डटे रहे। लड़के तो सब अपने प्राण लेकर भागे। घर पहुँचने पर जब माता_पिता पूछते हैं, तब वे भय से काँपते हुए शरीर से ऐसा वचन कहते हैं___
कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता।। बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा।।___अर्थ___क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बारात है या यमराज की सेना ? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं।_
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा। संग भूत प्रेत पिसाच जोगिनी विकट मुख रजनीचरा।। जो जियत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही। देखहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही।।___अर्थ___दूल्हे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं; वह नंगा, जटाधारी और भयंकर है। उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं। जो बरात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े पुण्य हैं, और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर_घर यह बात कह दी।
समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहीं। बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं।।___अर्थ___महेश्वर ( शिवजी ) का समाज समझकर सब लडकों के माता_पिता मुस्कराते हैं। उन्होंने बहुत तरह से लड़कों को समझाया कि निडर हो जाओ, डर की कोई बात नहीं है।
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